यूपी के कॉलेजों में एक दशक से भर्ती नहीं हुए लाइब्रेरियन, राजकीय व सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों की स्थिति एक जैसी
उत्तर प्रदेश के राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में एक दशक से लाइब्रेरियन (पुस्तकालयाध्यक्ष) की भर्ती नहीं हुई है। दोनों प्रकार के महाविद्यालयों में 300 से अधिक पद खाली हैं। कहीं शिक्षक
उत्तर प्रदेश के राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में एक दशक से लाइब्रेरियन (पुस्तकालयाध्यक्ष) की भर्ती नहीं हुई है। दोनों प्रकार के महाविद्यालयों में 300 से अधिक पद खाली हैं। कहीं शिक्षक तो कहीं बाबू लाइब्रेरियन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इसका असर महाविद्यालयों में पठन-पाठन पर भी पड़ रहा है। सबसे चिंताजनक स्थिति 321 सहायता प्राप्त महाविद्यालयों की है। यहां लाइब्रेरियन के 200 से अधिक पद खाली हैं।
पहले प्रबंधक अपने स्तर से लाइब्रेरियन की भर्ती कर लेते थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लाइब्रेरियन को पहली जनवरी 1986 से यूजीसी की ओर से निर्धारित वेतनमान दिया जा रहा है। चूंकि यूजीसी का वेतनमान पाने वाले पदों पर प्रबंधन नियुक्ति नहीं कर सकता। इसलिए सरकार ने 13 मई 2009 को इन कॉलेजों में लाइब्रेरियन की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। उसके बाद नवंबर 2012 में हुई कैबिनेट की बैठक में उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग को नियुक्ति की जिम्मेदारी दी गई थी। उच्च शिक्षा निदेशालय से आयोग को रिक्त पदों की जानकारी भेजी जाती है, जिसके आधार पर आयोग भर्ती करता है। निदेशालय ने न तो इस पद के लिए अधियाचन (रिक्त पदों की जानकारी) मांगा और न ही नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो सकी।
राजकीय डिग्री कॉलेजों में 100 से अधिक पद रिक्त
प्रयागराज। प्रदेश के 170 राजकीय डिग्री कॉलेजों में भी लाइब्रेरियन के 100 से अधिक पद खाली हैं। वर्तमान में 170 डिग्री कॉलेजों में से 36 में ही लाइब्रेरियन कार्यरत हैं। तकरीबन दो दर्जन कॉलेजों में पद सृजन ही नहीं हो सका है और शेष 110 से अधिक कॉलेजों में लाइब्रेरियन नहीं है। राजकीय डिग्री कॉलेजों में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के जरिए नियुक्ति होती है। लेकिन वर्ष 2008 के बाद से आयोग ने भर्ती नहीं निकाली।
उच्च शिक्षा निदेशालय से लाइब्रेरियन का अधियाचन नहीं मिलने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है।
वंदना त्रिपाठी, सचिव उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग
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