नौकरी संग पढ़ाई करने वालों के लिए एसओएल बेहतर विकल्प
एक तरफ जहां दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी वर्ष
मना रहा है, वहीं इससे संबद्ध स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग भी 5 मई को अपनी
स्थापना का 60वां वर्ष मनाने जा रहा है। डीयू के कैंपस ऑफ ओपन लर्निंग का
एक निकाय स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग ऐसा संस्थान है जो इग्नू से काफी पहले से
दूरस्थ शिक्षा की पढ़ाई करा रहा है। हर साल यहां लगभग एक लाख विद्यार्थी
विभिन्न कोर्स में दाखिला लेते हैं। नौकरी के साथ पढ़ाई करने वाले
विद्यार्थियों के लिए यह शिक्षा का एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरा है।
यह संस्थान डीयू के रेगुलर कोर्स से अधिक छात्रों को हर साल दाखिला देता
है। स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के वरिष्ठ पदाधिकारी प्रो.उमाशंकर पांडेय का कहना
है कि 5 मई को आयोजित होने वाले समारोह में हम यहां से पढ़ चुके 170
विद्यार्थियों को सम्मानित करेंगे। यहां से पढ़ने वालों में कई नामी लोग
हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एसओएल के पूर्व छात्र हैं। इसके
अलावा खेल, व्यवसाय, प्रशासनिक क्षेत्र में भी यहां से पढ़े हुए छात्र गए
हैं। यह संस्थान 900 छात्रों से शुरू हुआ था और वर्तमान में यहां 5 लाख
विद्यार्थी पढ़ रहे हैं।
वह बताते हैं कि देश में सकल नामांकन अनुपात 21 फीसदी से 50 फीसदी करने के
लिए दूरस्थ शिक्षा या ऑनलाइन शिक्षा एकमात्र तरीका है। हम लोग इस दिशा में
काम कर रहे हैं। स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग ने रेगुलर कोर्स की तरह अपने यहां
च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम स्नातक में लागू किया है। ऑनलाइन स्टडी
मैटेरियल, माइक्रोसॉफ्ट टीम की सहायता से सुरक्षित वातावरण में कक्षाओं का
संचालन किया गया है। आज वहां 9 हजार लेक्चर ऑनलाइन हैं। एसओएल के छात्रों
को कोविड के दौरान पढ़ाई में इसलिए भी अधिक दिक्कत नहीं आई क्योंकि हमने
उनके लिए ऑनलाइन पढ़ाई के साधन पहले बना दिए थे।
एसओएल का इतिहास : डीयू स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के कैंपस का एक भाग है, जिसे
पहले स्कूल ऑफ कॉरेस्पोंडेंस कोर्स एंड कंटिन्यूइंग एजुकेशन के नाम से जाना
जाता था। वर्ष 1962 में दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत स्थापित यह संस्थान
भारत में दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्थान है। 1962 में यह
मात्र 900 छात्रों के साथ शुरू हुआ था। वहीं सन 2006-2007 के शैक्षणिक सत्र
में दो लाख से अधिक छात्रों को नामांकित किया। कई मौकों पर यहां के छात्र
विभिन्न विषयों में अव्वल रहे हैं। स्कूल में विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए
प्रवेश प्रक्रिया दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित मानदंडों द्वारा
नियंत्रित होती है। परीक्षा भी दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की जाती
है। स्कूल के छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय डिग्री प्रदान करता है।
इसके राजधानी में कई केंद्र हैं और जल्द ही ताहिरपुर में एक नया केंद्र
पूर्वी दिल्ली के छात्रों के ध्यानार्थ बनाया जा रहा है।
2013 के बाद बदल गया एसओएल का स्वरूप : स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में एक बड़ा
बदलाव 2013 के बाद आया। इस दौरान प्रो.दिनेश सिंह डीयू के कुलपति थे और
सेवानिवृत्त प्रो.सीएस दुबे कैंपस ऑफ ओपन लर्निग के निदेशक और स्कूल ऑफ ओपन
लर्निंग की गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन थे। प्रो.सीएस दुबे बताते हैं एक दिन
तत्कालीन कुलपति प्रो.दिनेश सिंह ने कहा कि एसओएल में काफी संभावनाएं हैं
इसे छात्रों के लिए और उपयोगी बनाया जा सकता है। फार्म पैसों से खरीदे जाते
थे ब्लैक में बिकते थे। छात्रों को आवेदन में दिक्कत थी क्योंकि यह फिजिकल
मोड में था और काफी समय लगता था। इसके अलावा लाइब्रेरी सहित ऑनलाइन स्टडी
मैटेरिलय की भी दिक्कत थी। हमने पहले ऑनर्स के छात्रों को ऑनलाइन फार्म
अनिवार्य किया बाकी के लिए ऐच्छिक था। उस साल यहां एक लाख 48 हजार पांच सौ
एडमिशन स्नातक में हुए। इससे छात्रों को भेजने वाली जानकारी के लिए स्पीड
पोस्ट का खर्च उस समय एक करोड़ रुपये बचा था। इसके अलावा हमने डिजिटल
लाइब्रेरी और ऑनलाइन डिजिटल लर्निंग की सुविधा दी। जिस दाखिला में तीन दिन
लग जाते थे, ऑनलाइन होने से यह दाखिला मात्र 8 मिनट में हो जाता था। जब
मैंने एसओएल ज्वाइन किया तो स्नातक के सभी पांच कोर्स ऑनलाइन करने के लिए
अनुमति भी ली थी, जो अब तक नहीं हुआ। जब मैं आया था तो 257 करोड़ रुपये
इनके पास 1960 के बाद से थे लेकिन जब मैं यहां से गया तो 6 सौ करोड़ से
अधिक रुपये एसओएल के पास थे।
भविष्य का खाका तैयार किया : दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग
ने इस साल कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं और अपने भविष्य का खाका तैयार
किया है। डीयू में विगत दिनों एसओएल को लेकर पास हुए प्रस्ताव में यह
पीएचडी छोड़ कई ऐसे प्रोग्राम शुरू करने जा रहा है, जिसमें दिल्ली और बाहर
के विद्यार्थी दाखिला ले सकेंगे। बीबीए, एमबीए के अलावा कई ऐसे कोर्स
संचालित करने की तैयारी है, जिसकी फीस निजी संस्थानों में काफी अधिक है।
एसओएल अपने यहां मानद प्रोफेसर की नियुक्ति भी कर रहा है जो अपने विषय के
विशेषज्ञ होंगे। कुछ लोगों की नियुक्ति हो भी गई है। यह छात्रों को
निर्देशित करेंगे और बेहतर शिक्षण में योगदान देंगे। ये प्रोफेसर राजधानी
के डीटीयू, डीयू, आईपीयू, जेएनयू के प्रोफेसर हैं। फैकल्टी ऑफ ओपन लर्निंग
के तहत अब डिपार्टमेंट ऑफ डिस्टेंस एंड कांटिन्युइंग एजुकेशन बना है जिसके
तहत कई कोर्स पास हुए हैं।
छात्रों को रोजगार दिलाने की कोशिश : एसओएल के विशेष कार्य अधिकारी
प्रो.उमाशंकर पांडेय का कहना है कि जो कोर्स संचालित होने जा रहे हैं, उसे
डिस्टेंस एजुकेशन बोर्ड से भी अप्रूव कराने की तैयारी है। इसकी पढ़ाई
दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ही होगी। यहां छात्रों को निर्देशित करने के
लिए मानद प्रोफेसर नियुक्त किए गए हैं। एसओएल पहले से भी जॉब आरिएंटेड
कोर्स का संचालन मुफ्त में करता आया है। हमारी कोशिश है कि जो छात्र हमारे
यहां पढ़ रहे हैं, वह रोजगार भी पाएं। इसलिए इस दिशा में मशरूम की खेती
कैसे करें, इसको लेकर एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा। यह
पाठ्यक्रम हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध होगा। इसके अलावा हमारी कोशिश है
कि फैकल्टी के तहत हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में अनुवाद की भी पढ़ाई शुरू
होगी। यह रोजगार परक शिक्षा की दिशा में उठाए गए कदम हैं।
ये पाठ्यक्रम होंगे शुरू
डिग्री
- बीए इकोनामिक्स
- बीए-बीएससी गणित
- बैचलर आफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (बीबीए)
- बैचलर आफ मैनेजमेंट स्टडीज (बीएमएस)
- बैचलर आफ लाइब्रेरी साइंस
- एमबीए
- मास्टर इन लाइब्रेरी एंड इन्फार्मेशन साइंसेज
डिप्लोमा कोर्स
- एक वर्षीय पत्रकारिता (हिंदी और अंग्रेजी)
- पीजी डिप्लोमा इन आटोमेटेड एंड डिजिटल लाइब्रेरी मैनेजमेंट
- मशरूम की खेती
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