कलंक कथा: आयुष दाखिलों के नाम पर लिए पांच-पांच लाख रुपए
यूपी के आयुष कॉलेजों में दाखिले के लिए काउंसिलिंग प्रक्रिया महज दिखावा थी। नीट-यूजी मेरिट का भी कोई मतलब नहीं था। घोटालेबाजों ने आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथिक पाठ्यक्रमों की एक-एक सीट की सौदेबाजी की। पांच-पांच लाख रुपये में सीटें बेंच दीं। करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे कांउसिलिंग में हो गए। पात्र छात्रों के सपनों का सौदा कर एडमिशन के दलालों ने अयोग्य विद्यार्थियों को दाखिला दिला दिया। इसमें निदेशालय के अफसर व काउंसिलिंग एजेंसी की भूमिका सवालों के घेरे में है।
नीट-यूजी 2021 की आयुष काउंसिलिंग में 891 छात्र रडार पर हैं। आरोप हैं कि नीट मेरिट से इतर दाखिले हुए हैं। कई ऐसे छात्र भी हैं जो नीट में फेल हो गए। उसके बावजूद आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथ पाठ्यक्रमों में दाखिला पा गए। आयुष में सबसे ज्यादा बैचरल ऑफ आयुर्वेद मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए मारामारी रहती है। उसके बाद बीएचएमएस व बीएएमएस की मांग रहती है।
राजकीय कॉलेजों में दाखिले की घूस दोगुनी
आयुष पाठ्यक्रमों की काउंसिलिंग का ठेके एजेंसी को दिया गया था। आयुर्वेद
निदेशालय के अफसरों को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके बावजूद बड़े
पैमाने पर एडमिशन में घोटाला हो गया। आठ राजकीय आयुर्वेद कॉलेजों में करीब
400 सीटे हैं। 68 निजी कॉलेजों में लगभग साढ़े चार हजार सीटें हैं। लगभग दो
लाख रुपये सालाना फीस प्राइवेट कॉलेजों के लिए तय है। हॉस्टल की फीस इसमें
शामिल नहीं है। जबकि सरकारी कॉलेजों में 14 हजार रुपये सालाना फीस है।
शिकायतों में आरोप लगाया गया है कि राजकीय कॉलेजों में प्रवेश के नाम पर
पांच-पांच लाख रुपये तथा निजी कॉलेजों में दाखिला दिलाने के लिए दलालों ने
तीन से चार रुपये तय कर रखे थे। होम्योपैथ के आठ सरकारी कॉलेजों में लगभग
800 सीटें हैं। दो प्राइवेट होम्योपैथिक कॉलेज हैं। इसी तरह यूनानी के
सरकारी व प्राइवेट कॉलेज हैं। सरकारी कॉलेजों में दाखिले दिलाने के नाम पर
मोटी रकम वसूली गई। जबकि सरकारी में दो से तीन लाख रुपये वसूले गए।
कांउसिलिंग के जिम्मेदार कभी नहीं बदले
एडमिशन घोटाले में आयुष काउंसिलिंग प्रक्रिया में शामिल रहे अफसरों व
कर्मचारियों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। शुरुआती जांच में पाया गया
है कि वर्षों से चुनिंदा अधिकारी व कर्मचारी कांउसलिंग की प्रक्रिया पूरी
करा रहे हैं। दाखिले में फर्जीवाड़े की आशंका की शुरूआत यहीं से जाहिर की
जा रही है। क्योंकि नीट मेरिट से लेकर शैक्षिक दस्तावेजों की जांच का काम
इन्हीं अधिकारी व कर्मचारियों पर रहता है। एजेंसी से मिलीभगत कर अधिकारी
कर्मचारी किसी को भी दाखिला देने में कामयाब हो सकते हैं। यही नहीं सुबह
छात्र को कोई कॉलेज आवंटित होता है। रात में कॉलेज का नाम बदल जाता है।
पिछली काउंसिलिंग में इस प्रकरण का हल्ला भी मचा था।
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