सीएम योगी ने प्रदेश के मेघावी छात्र - छात्राओं को किया , कक्षा आठ तक के बच्चो को भेजे DBT के माध्यम से रूपये , क्लिक करे और पढ़े पूरी खबर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमारे विद्यालय नवाचार और शोध के नए केंद्र के रूप में विकसित हों। छात्र- छात्राओं के अंदर कठिन चुनौतियों से जूझने का जज्बा हो, इसके लिए हम अपने आपको तैयार करें। मुख्यमंत्री शनिवार को राजधानी के लोकभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदेश के मेधावी छात्र एवं छात्राओं को सम्मानित कर रहे थे। इस दौरान योगी ने कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को यूनिफॉर्म, जूता-मोजा, स्टेशनरी व स्कूल बैग के लिए डीबीटी के माध्यम से बच्चों के माता-पिता, अभिभावकों के खाते में 1200 रुपए की राशि भेजने की प्रक्रिया की शुरुआत भी की।
योगी ने कहा कि हम सभी की जिम्मेदारी है कि कोई भी छात्र स्कूल से वंचित न रह जाए। हम अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन करें, ये देश की सबसे बड़ी सेवा है। श्रीमद्भगवतगीता में तो किसी को शिक्षित करना सबसे पवित्र कार्य माना गया है। उन्होंने शिक्षकों व शिक्षा विभाग के अधिकारियों से कहा कि आप उस पवित्र कार्य से जुड़े हुए हैं। आपका आचरण एक शासकीय अधिकारी की तरह नहीं, बल्कि समाज के एक मार्गदर्शक के रूप में, एक शिक्षक के रूप में होना चाहिए।
नई पीढ़ी के लिए रोल मॉडल हैं मेधावी छात्रः मुख्यमंत्री ने कहा कि इन कार्यक्रमों के माध्यम से हम अपने प्रतिभाशाली छात्र - छात्राओं सम्मानित करते हुए नई पीढ़ी के सामने उन्हें रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं कि अगर वो भी ऐसे ही परिश्रम करेंगे तो उन्हें भी सम्मान प्राप्त होगा। योगी ने छात्रों को सफलता का मंत्र देते हुए कहा कि परिश्रम का कोई विकल्प नहीं हो सकता। शॉर्टकट अपनाने वाला व्यक्ति कभी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकता।
मेधावियों के नाम पर रखा जाएगा सड़क का नाम
मुख्यमंत्री ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा परिषद, यूपी माध्यमिक संस्कृत शिक्षा सीबीएसई के छात्र - छात्राओं को यहां सम्मानित किया गया है। ये छात्र-छात्राएं जिस गांव, मोहल्ले के होंगे, वहां की सड़क का नामकरण इनके नाम पर या वहां की सड़क का निर्माण कार्य सरकार के स्तर पर होगा। विधायक और सांसद के साथ मिलकर इन्हीं के द्वारा इसका शिलान्यास भी कराया जाना चाहिए।
मैं बचपन में इंजीनियर बनने की सोचता थाः
मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संन्यास का फैसला लेना उनके और उनके माता-पिता के लिए चुनौती थी। कोई अभिभावक नहीं चाहता कि उसका बच्चा संन्यासी बन जाए। उन्होंने कहा कि बचपन में वह भी वही सोचते थे, जो आज के बच्चे सोचते हैं। वह चाहते थे कि एक अच्छा इंजीनियर बनें। बाद में अहसास हुआ कि कोई इंजीनियर या पद प्राप्त करने से अच्छा है कि पीड़ितों के साथ खड़ा रहूं । लखनऊ में आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने यह बात कही।
88 लाख छात्र-छात्राओं के अभिभावकों को योजना का लाभ
12 सौ रुपये प्रति छात्र के हिसाब से मिलेगी खातों में राशि
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